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Tuesday 6 July 2010

कहीं आप ज़हर तो नहीं खा रहे,आपकी थाली का भोजन कैसा हमोटापा, हृदय रोग एवं मधुमेह का कारकै

समय के साथ-साथ जिन चीजों में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है उनमें आपका भोजन मुख्य है। लेकिन तमाम सुविधाओं के बावजूद आज हम पोषक तत्वों से भरपूर भोजन को सही अर्थों में समझ नहीं पाए हैं। 'पैक्ड' फूड प्रोडक्ट की ओर भी हमारा रूझान बढ़ता जा रहा है। इन 'पैक्ड' पदार्थों में क्या और कितनी मात्रा में हानिकारक तत्व हो सकते हैं ये जाने बिना हम इनके गुलाम बनते जा रहे हैं।

पिछले दो दशकों में हमारी भोजन संबंधी आदतों में परिवर्तन हुए हैं। हमारे आहार में इंस्टेंट फूड एवं स्नैक्स ने एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। इन्हें हम औद्योगिकीकरण के प्रभाव के रूप में देख सकते हैं। जहाँ बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण ने हमारी आर्थिक विकास दर को बढ़ाया है वहीं हमारे मानवीय संसाधनों का दोहन भी किया है, फलस्वरूप समय की कमी/ आर्थिक संपन्नता एवं अंतत: फैशन के चलते हम इन इंस्टेंट फूड के आदी होते जा रहे हैं।

इंस्टेंट फूड अर्थात्‌ तुरंत उपभोग योग्य बनाए जाने वाले पदार्थों का उपयोग आज की माँग भी है। किन्तु हम सभी जानते हैं कि इन पदार्थों को लंबे समय तक उपयोगी बनाए रखने के लिए इनमें संरक्षकों यानी प्रिजर्वेटिव का उपयोग आवश्यक है। प्रिजर्वेटिव के उपयोग की कितनी मात्रा सेहत के लिए हानिकारक है यह आज एक बहस का मुद्दा बन चुका है।

आइए, हम कुछ अन्य इंस्टेंट फूड की समीक्षा भी कर लें। विश्व जहाँ रोग के कारक बैक्टीरिया पर विजय का उत्सव मना रहा है वहीं दूसरी ओर दिन-प्रतिदिन उभरते जीवनशैली रोग चिकित्सा विज्ञानियों के गले की हड्डी बने हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि विश्व में सर्वाधिक मृत्यु हृदय रोग एवं कैंसर से हो रही है। जो कि आहार के प्रभाव से जन्मे रोग हैं।

आहार में शामिल कई फूड प्रोडक्ट विभिन्न कारणों के चलते स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। भारतीय आहार में नमकीन सेंव, मिक्सचर, कचौड़ी, समोसा, चिप्स, अचार, पापड़, महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। विभिन्न मार्केट सर्वे बता रहे हैं कि हमारे घरों में बनने वाले इन पारंपरिक व्यंजनों के स्थान पर बाजार से तैयार बने-बनाए व्यंजन लाने अथवा तैयार मसालों से इन्हें बनाने की परंपरा की शुरुआत हो चुकी है।

इन फूड प्रोडक्ट को प्रिजर्व रखने के लिए नमक का प्रयोग किया जाता है। नमक जो कि हमारे शरीर का आवश्यक तत्व है तथा एक इलेक्ट्रोलाइट भी है। इसका यह गुण तभी प्रभावशाली है जब यह अन्य तत्वों की अनुपातिक मात्रा में हो। शरीर में सोडियम (अर्थात्‌ नमक) का संतुलन पोटेशियम से होता है। पोटेशियम एवं सोडियम का स्वस्थ अनुपात है 1.5 अर्थात्‌ पोटेशियम की मात्रा सोडियम की मात्रा से डेढ़ गुना होने पर शरीर में इनका संतुलन बना रहता है।

जबकि एक सर्वे के अनुसार मार्केट में उपलब्ध अधिकांश नमकीन पदार्थों का पोटेशियम सोडियम अनुपात 0.02 से 0.54 है। अर्थात्‌ किसी भी पदार्थ में यह अनुपात मानक 1.5 नहीं है। इस अनुपात का असंतुलन उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, गुर्दे के रोग, अस्थितंत्र के रोग एवं नाड़ी संबंधी गड़बड़ियों का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त तले हुए पदार्थों में उपस्थित अधिक वसा की मात्रा पुनः मोटापा, हृदय रोग एवं मधुमेह का कारक है।

कच्ची सब्जियाँ खाएँ, सेहत बनाएँ

भरपूर भोजन के साथ अगर आप अच्छी सेहत का सपना पाले हुए हैं, तो अपने भोजन में किसी कच्ची सब्जी या फल को जरूर शामिल करें। विशेषज्ञों का मानना है कि कच्चे फल और सब्जियाँ भोजन को पचाने में सहायता करने के साथ शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व भी उपलब्ध कराते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार कच्ची सब्जियों और फलों का कोई और विकल्प भी नहीं है।
मौसमी सब्जियाँ : पौष्टिक और गुणकारी
 
बाजार में चारों तरफ हरी पत्तेदार सब्जियाँ ताजी एवं सस्ते दामों में छाई हुई हैं, लेकिन यह जानते हुए भी कि हरी पत्तेदार सब्जियाँ स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है, बहुत कम सब्जियों का उपयोग किया जाता है व उनमें से बहुत हरी पत्तेदार सब्जियों को जानते हुए भी फेंक दिया जाता है। जैसे- चोलाई की डंडी, काँटेवाली चोलाई, चुकंदर, चने की दाल, छोड़, इमली व लीची के पत्ते, अरवी, कद्दू, गाजर, फूलगोभी, लौकी, गिलकी, टमाटर, आलू, सोयाबीन, आँवले, करेले व शलजम के पत्ते को भी खाने में उपयोग कर सकते हैं।
शाकाहारी होना 'कूल' है
 
चाहे किसी प्रसिद्ध हस्ती की नकल हो, जानवरों के प्रति सहानुभूति हो या स्वास्थ्य कारण हो, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि युवा शुद्ध शाकाहार की ओर लौट रहे हैं। आज हर कहीं शाकाहार के प्रति युवा आकर्षित हो रहे हैं। अब धार्मिक नियमों के बंधन, नैतिकता, स्वास्थ्य या मांसाहार के प्रति अरुचि भी इसका कारण हो सकता है। ऐसे युवाओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो मांसाहार को किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
देशी दही के खिलाफ साजिश
 
हमारे देश में घर से कोई कहीं जाने लगता है तो शगुन के लिए दही खिलाने का रिवाज है। मतलब दही हमारे लिए एक आस्था भी है। दही में पलने वाला भला बैक्टीरिया हमारे पेट को सिर्फ कई रोगों से ही नहीं बचाता है बल्कि मान्यता है कि यह बुरी ताकतों से भी बचाता है। दही से बने मट्ठे के बारे में एक बहुत चर्चित कहावत है- जो खाए मट्ठा, वही होए पट्ठा। लेकिन लगता है, अब उस दही पर ही संकट आने वाला है। सरसों के तेल की तरह दही और उससे बने मट्ठे को बदनाम करने की कोई रणनीति बन रही हो तो उसमें आश्चर्य की बात नहीं।
कैसे करें शुद्ध शहद की पहचान
 
शहद एक प्राकृतिक मधुर पदार्थ है जो मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस को चूसकर तथा उसमें अतिरिक्त पदार्थों को मिलाने के बाद छत्ते के कोषों में एकत्र करने के फलस्वरूप बनता है। शहद का स्वाद बेहद मीठा होता है। दूध के बाद शहद ही ऐसा पदार्थ है जो उत्तम एवं संतुलित भोजन की श्रेणी में आता है, क्योंकि शहद में वे सभी तत्व पाए जाते हैं जो संतुलित आहार में होने चाहिए।