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Thursday 22 July 2010

मामूली बिमारी नहीं है निमोनिया

निमोनिया... जिसे हम आमतौर पर मामूली बीमारी ही समझते आए हैं वो अब घातक रूप ले चुकी है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर घंटे निमोनिया से 45 बच्चों की मौत होती है। यानी करीब हर मिनट हमारे देश में एक बच्चा निमोनिया की भेंट चढ़ जाता है। इसलिए निमोनिया को मामूली बीमारी समझने की भूल न करें। निमोनिया कितना खतरनाक है आइए बताते हैं आपको खास रिपोर्ट में।


साइलेंट किलर...

जी हां, ये सच है। ये साइलेंट किलर हर मिनट हमारे देश में एक बच्चे की बली ले रहा है वो भी सिर्फ हमारी गलतफहमी की वजह से।


वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के इस बारे में आंकड़े चौंकाने वाले हैं।


- हर घंटे निमोनिया की वजह से भारत में 45 बच्चों की मौत होती है।

- यानी हर मिनट करीब 1 बच्चे को निमोनिया मौत के मुंह में पहुंचा देता है।

- डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में निमोनिया से हर साल 4 लाख बच्चों की मौत होती है।


साफ है इस साइलेंट किलर के खूनी पंजे को रोकने के लिए हमें सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।
चौंकाने वाले आंकड़ें
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक निमोनिया से जितने बच्चे हर साल दुनिया में मरते हैं, उनमें से 20 फीसदी बच्चे भारत के होते हैं। यानी दुनियाभर में निमोनिया से मरने वाले हर पांच बच्चों में एक बच्चा हिन्दुस्तानी होता है। इसकी एक बड़ी वजह गरीबी और निमोनिया को लेकर हमारी गलतफहमी है।
गौर कीजिए इन आंकड़ों पर भी...
भारत में 45 फीसदी बच्चों में पोषण की कमी है। उन्हें निमोनिया का बैक्टीरिया जल्दी अपने शिकंजे में ले सकता है। बीमारी के बारे में जानकारी की कमी होने की वजह से पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में निमोनिया को अक्सर बुखार समझकर उसका उपचार घर में ही किया जाता है। पहचान में देरी के बाद भी नज़दीक में अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपल्ब्ध ना होने की वजह से इलाज सही ढंग से नहीं हो पाता। निमोनिया की वैक्सीन होने के बावजूद भारत में वैक्सिनेशन की दर महज़ 50 फीसदी है। यानी देश के आधे बच्चों को वैक्सीन दी ही नहीं जाती।
किसी एक बीमारी से हमारे देश में इतनी मौतें नहीं होतीं जितनी निमोनिया से होती हैं। एड्स, मलेरिया और मीज़ल्स से सालाना मरने वाले कुल बच्चों की तादाद भी निमोनिया का शिकार होने वाले बच्चों से कम है। साफ है कि भारत को मामूली मानी जाने वाली इस जानलेवा बीमारी के खतरे से अब तो सचेत होना ही होगा।
लक्षण और इलाज
साइलेंट किलर निमोनिया पिछले कुछ दशकों में खतरनाक बीमारी के रूप में उभरी है। निमोनिया केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसे विकसित देशों के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है। अमेरिका में हर साल 3 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं जिनमें से पांच फीसदी की मौत हो जाती है। आखिर कैसे होता है निमोनिया, क्या हैं इस बीमारी के लक्षण और क्या है इसका इलाज।
एक ऐसी बीमारी जो देखते ही देखते मरीज को अंदर से खोखला करने लगती है। अगर सही समय पर इलाज शुरू नहीं हुआ तो फिर ये बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है।
कैसे आते हैं न्यूमोनिया की चपेट में
निमोनिया एक प्रकार का संक्रमण है। हवा में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच जाता है। कई बार फंफूद की वजह से भी लंग संक्रमित हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति पहले से किसी बीमारी जैसे लंग डिजीज, हार्ट डिजीज से पीड़ित है तो उन्हें गंभीर संक्रमण यानी सीवियर निमोनिया होने का खतरा रहता है। हालांकि इस बीमारी का इलाज संभव है।
डॉक्टर के परामर्श से एंटीबॉयोटिक दवा लेने पर बीमारी से पूरी तरह से मुक्ति पा सकते हैं। एक स्टडी के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाइयों की खोज से पहले निमोनिया की चपेट में आने वाले कुल मरीजों में से एक तिहाई मरीजों की मौत हो जाती थी।

क्या है लक्षण

सर्दी, हाई फीवर, कफ, कंपकपी, शरीर में दर्द, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द निमोनिया के लक्षण हैं। छोटे या नवजात बच्चों में कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देता है। बच्चे देखने से बीमार लगें तो उन्हें निमोनिया हो सकता है।


क्या है बचाव


डॉक्टरी परामर्श से एंटीबायोटिक दवाएं लेकर निमोनिया को खत्म किया जा सकता है। निमोनिया के मरीज को सादा खाना खाना चाहिए और खूब पानी पीना चाहिए। मरीज को ऑयली, मसालेदार और बाहर के खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।


पिछले कुछ दशकों में निमोनिया का प्रकोप लगातार बढ़ा है। इस बीमारी बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इस साल 2 नवंबर को पहली बार विश्व निमोनिया दिवस मनाया गया। दुनिया के करीब 20 देशों में ये दिवस मनाया गया ताकि बीमारी को लेकर न केवल आम लोगों को बल्कि डॉक्टरों व सरकारों को भी सचेत किया जा सके।