एक ओर जहां भारत दुनिया की उभरती शक्ति होने का दावा कर रहा है वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पोलियो, मलेरिया और क्षयरोग से ग्रसित है.
दुनिया के कई प्रगतिशील देशों ने भी इन बीमारियों पर लगभग क़ाबू पा लिया है.
ताज़ा आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर के पोलियो के 42 फ़ीसदी, क्षयरोग के 23 फ़ीसदी, कुष्ठरोग के 54 प्रतिशत, काली खांसी के 86 फ़ीसदी और मलेरिया के 55 प्रतिशत पीड़ित भारत में बसते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ भारत में कुपोषित शिशुओं की तादाद पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है.
जानकारों का मानना है कि इन आंकड़ों पर नज़र दौड़ाते वक्त ये भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं जैसे पीने के साफ पानी और स्वच्छता की भी कमी है.
ग़रीबी और कुपोषण पर एक अध्ययन में अरविंद विरमानी का कहना है कि आयु मे बढ़ोतरी और मृत्यु-दर में कमी अलग-अलग बीमारियों पर क़ाबू पाने के नतीजे में नहीं बल्कि पीने के साफ़ पानी और स्वच्छता पर निर्भर करती है.
बुनियादी सुविधाएं
लेकिन यूनिसेफ़ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े इस संबंध में बहुत अच्छी तस्वीर नहीं पेश करते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के सिर्फ 21 प्रतिशत जनसंख्या को 'उन्नत' स्वच्छता सेवाएं उपलब्ध हैं जबकि 69 फ़ीसदी लोग शौच के लिए खुली जगह में जाते हैं.
हालांकि पीने के साफ़ पानी मुहैया करवा पाने के मामले में हालात पहले से बहुत बेहतर हुए हैं.
भारत ने इस क्षेत्र में सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, ग्रामीण जल आपूर्ति योजना और पूर्ण स्वच्छता अभियान जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की है.
लेकिन कई राज्य इन योजनाओं के लिए दिए गए धन को पूरी तरह ख़र्च नहीं कर पा रहे हैं.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत छत्तीसगढ़ में उत्साहर्वधक काम हुआ है लेकिन उड़ीसा में ये बहुत सफल नहीं रहा है.